मंजिल
मिलती जरूर मंजिल, कितनी लंबी हो डगर।
रत्नाकर तक पहुँची है, देखा दरिया का सफर।।
पर वह भी रखता है , पर हौसलो से उड़ता है।
देखा कभी बाज को, कैसे आसमां चीरता है।।
खुद में हो भरोसा इतना, मंजिल सदा याद रहे।
कण्टक शूल शत्रुओं का, इस पथ अंदाज रहे।।
सफलता सीधी नहीं, होती घुमावधार चक्कर है।
राह की ख़ुशनुमा बालू, ये चट्टानों की टक्कर है।।
चला जो शिखर पथ, हम सफर कम रह जाते।
बुलंदियों के शिखर पर, हौसलों से ही चल पाते।।
कुछ पाने के लिए, बहुत कुछ खोना भी होता।
बना जाते इतिहास वो, फौलादी जीवन होता।।
चलते है पथिक अनेक, पथ भी अनेक अचल ।
सत्यपथ पर जो चला, मंजिल खुद आई चल ।।
आसान नहीं पथ इस, रख वह कदम चलना।
मंजिल कदम चूम लेती, पर कठिन सत्य भरना।।
मिलती जरूर मंजिल—
(कवि- डॉ शिव ‘लहरी)