हौसला नहीं होता,
हौसला नहीं होता,
तो वो, कुछ कर न पाती,
बस, सहती,
और, बस सहते ही जाती.
मगर, वक्त को,
भी, कुछ तरस आ गया,
उसने, अपना, रुख,
स्त्री की तरफ, घुमा दिया.
जिन जिन, हकों से,
वो महरूम, थी,
चाहतीं थी, बहुत कुछ करना,
मगर कमजोर थी.
हक और अधिकार,
स्त्री के हिस्सें में भी ही आया है,
ये, बदलाव,
सावित्री बाई फुले ने लाया है.
तब से, जो,
ज्योत से ज्योत जली है,
इसके बाद न,
फिर स्त्री रुकी है.
हमें आगे बढने के लिए,
किसी और से उम्मीद नहीं लगानी,
एक दुजे का हाथ जो थाम लें,
अंधेरों में भी, होगी रोशनी.