हो सके तो।
दिल खोलकर कीजियेगा आलोचना मेरी,
बेशक चाहे मुझको कोस लीजियेगा,
पर ऐसा भी क्या किया है मैंने,
हो सके तो एक बार ये भी सोच लीजियेगा,
वक्त ख़ुद ही एक दिन कर देता है,
सभी को सभी से जुदा,
हो सके तो आप कभी किसी से,
न कहिएगा अलविदा,
जो बात हो कहनी सो कह दीजियेगा,
पर दिल में कहीं कोई वहम मत रखियेगा,
हो सके तो अपने आप से आप,
दूर हर तरह का अहम रखियेगा,
संपर्क जुड़े न जुड़े कोई,
पर जोड़ के मुझसे ये एहसास रखियेगा,
मेरे शब्दों में कहीं कोई दिखावा नहीं,
हो सके तो आप मुझपे अपना,
बाकी इतना सा विश्वास रखियेगा
-अंबर श्रीवास्तव।