हो ली होली
हो ली होली
हो ली होली हुड़दंग रहित, भली लगी यह सूखी होली
भीगी होली बच्चों तक अब, खेले बच्चे असली होली।
मुस्काते चेहरों के झुंड दिखे, सभी मिलेंगे अगली होली
कुछ खेले होली घूम-घूम, कुछ की अपने घर तक होली।
गुजिया का सालाना दर्शन,मिलेगी अब वो अगली होली
मिलती है जब खाना मुश्किल, तेल-मिठाई लाती होली।
बिन खाए गुजिया पछताते, इंतजार कराती अगली होली
प्रेम मिलन त्यौहार अनूठा, हर साल रंगीली आए होली।
कोरोना कहीं नरक में डूबा, उसकी होगी कमर भी टूटी
भरी दुपहरी बादल बरसे, कुदरत भी लगती खेली होली।
तीस बरस का कुर्ता मेरा, रेशम-रेशम चमक रहा था
कौन धरोहर पहचाना, अबीर-गुलाल वो झटक रहा था।
नन्ही-मुन्नी यह कविता मेरी, होली की छोटी- सी चेरी
कहती आएगी फिर होली, लेकिन अभी तो हो ली होली।
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, मौलिक/स्वरचित।