हो नहीं जब पा रहे हैं
गीत… ( हो नहीं जब पा रहे हैं..)
हो नहीं जब पा रहे हैं ठीक से भू पर खड़े।
मान लें कैसे बताओ हो गये हैं अब बड़े।।
प्रश्न करती उँगलियाँ ये उठ रही हैं जोर से।
हो गया हूँ चुप बहुत ही बादलों के शोर से।।
कार्य सारे दिख रहे हैं व्यर्थ से भू पर पड़े।
मान लें कैसे बताओ हो गये हैं अब बड़े।।
चढ़ नहीं दो पा रहे हैं सीढ़ियाँ भय भूल में।
लग गये उत्कर्ष अपना ढूँढ़ने हम धूल में।।
देख पाये ही नहीं जब भाग्य माथे पर गड़े।
मान लें कैसे बताओ हो गये हैं अब बड़े।।
जानता हूँ साथ देंगे सिर्फ अपने ही यहाँ।
पूछता हूँ हाँकते जो साथ देते कब कहाँ।।
तोड़ सकते हैं नहीं यूँ तार जो मन से जुड़े।
मान लें कैसे बताओ हो गये हैं अब बड़े।।
लग रहा है यदि बुरा तो मांग लेता हूँ क्षमा।
पर सही यह मानिएगा साधना ही है जमा।।
जब हमारे पास खाली शेष सपनों के घड़े।
मान लें कैसे बताओ हो गये हैं अब बड़े।।
हो नहीं जब पा रहे हैं ठीक से भू पर खड़े।
मान लें कैसे बताओ हो गये हैं अब बड़े।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)