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26 Sep 2024 · 1 min read

हो जाता अहसास

कुण्डलिया
~~~
कभी कभी जब प्यार का, हो जाता अहसास।
और हृदय में सहज ही, जग जाती है आस।
जग जाती है आस, प्रफुल्लित हो जाता मन।
लिए मिलन की चाह, बढ़ा जाता तब स्पंदन।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, घटित यह हो जाता तब।
सहसा हो अनुभूति, प्रीति की कभी कभी जब।
~~~
अनुभव से हम सीखते, जीवन के व्यवहार।
कहां मिली नफरत हमें, और कहां पर प्यार।
और कहां पर प्यार, सहज अहसास कराते।
यही लिए सब साथ, सतत हम बढ़ते जाते।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, स्नेह नैसर्गिक अभिनव।
होता है अनमोल, साथ हरपल प्रिय अनुभव।
~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य

2 Likes · 3 Comments · 28 Views
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