हो गयी हद मौन की
हो गयी हद मौन की सब ग्रंथियों को खोल दो,
रक्त-स्याही को बना अब लेखनी को बोल दो ।
छंद गढ़ते हो बहुत ग़र वेदना के घाव के,
आ गया है वक़्त अब तुम शब्द का भी मोल दो ।
दीपक चौबे ‘अंजान’
हो गयी हद मौन की सब ग्रंथियों को खोल दो,
रक्त-स्याही को बना अब लेखनी को बोल दो ।
छंद गढ़ते हो बहुत ग़र वेदना के घाव के,
आ गया है वक़्त अब तुम शब्द का भी मोल दो ।
दीपक चौबे ‘अंजान’