क़त्ल कर गया तो क्या हुआ, इश्क़ ही तो है-
हो गया तो हो गया, क्या हुआ, इश्क़ ही तो है,
कर गया बीमारे-जिगर तो क्या हुआ, इश्क़ ही तो है।
आशिक़ भी दौर-ए-ग़ुरबत, क्या से क्या हो गया,
न पूछी हमसे ख़बर तो क्या हुआ, इश्क़ ही तो है।
वफ़ा ओ जफ़ा में ख़ास फ़र्क़ न समझिए इन दिनों,
मायने पलट जाएं तो क्या हुआ, इश्क़ ही तो है।
महबूब ने वादे ख़ूब किये, पर निभाए थोड़े-थोड़े,
तोड़े हैं वादे पे वादे तो क्या हुआ, इश्क़ ही तो है।
बारहा मुझसे मिलने आते रही हैं, फ़जाएं उनकी,
इक झोंका बेहोश किया तो क्या हुआ, इश्क़ ही तो है।
मैं सोचता रहा, वो सब हैं मेरे चाहने वाले अज़ीज़,
कोई क़त्ल कर गया तो क्या हुआ, इश्क़ ही तो है।