हो गए हम बे सफ़र
बाप को है रंज लेकिन कह न पाया फोन पर
लौट आ वापस वतन तू , ऐ मेरे लख़्ते जिगर !
दूसरों पर हर घड़ी रखते हैं जो पैनी नज़र
क्यों नहीं रखते हैं अपनी वो कोई खै़र ओ ख़बर
दस बरस की उम्र में ही बन गए ख़ानाबदोश
ज़िन्दगी ने कर दिया इनको अभी से दरबदर
आस्मां को देखकर मैं सोच में डूबा रहा
कौन लाया बादलों को आस्मां पर खींचकर
ग़म नहीं इसका हमें हम हो न पाए आपके
टीस इतनी सी है दिल में हो गए हम बे-सफ़र
—शिवकुमार बिलगरामी