होश खो देते जो जवानी में
होश खो देते जो जवानी में
चैन पाते न ज़िंदगानी में
इक तराजू में कैसे तोलोगे
मेल क्या है नयी पुरानी में
लोग कहने लगे हैं अब हमसे
आग हमने लगा दी पानी में
राह में पलकें तक बिछा दीं हैं
और करते क्या मेज़बानी में
छूट अब तो गईं हदें सारी
देर है अब भी क्या रवानी में
यूँ नुमाइश किया नहीं करते
फ़र्क है दान और दानी में
‘अर्चना’ हम किसी को क्या पढ़ते
डूबे हैं अपनी ही कहानी में
डॉ अर्चना गुप्ता
26.02.2024