होशियारी
मई की दोपहर चिलचिलाती धूप मै और मेरे मां पापा चौराहे पर काफी देर से रिक्शे वाले का इंतजार कर रहे थे । तभी पापा ने एक रिक्शे वाले को पकड़ा हम तीनों बैठ गए ।हौंडा एजेंसी के सामने रिक्शे को रूकवाया ।
” कितना हुआ भईया ‘
” पचास रुपए साहब ”
रिक्शा वाला पसीना पोछते तथा हाफ़ते हुए बोला ।
” लूट मची है क्या ? इतनी कम दूरी के पचास रुपए ,
धूप न होती तो रिक्शा भी न …… ” अपनी बात अधूरी छोड़ मेरी मां ने डांट डपट कर 25 रुपए थमा दिए।
” पहले मालूम होता कि आग बरसाती धूप में तीन जनों को खीचने के बाद भी मेरे साथ लूट होगी तो कभी न बैठाता ”
रिक्शा वाला बड़बड़ाता हुआ चला गया ।
” देखिए जी । बच गए न २५ रुपए , इसकी बिटिया आइस्क्रीम खाएगी।” मां अपनी होशियारी पर इतराती हुई बोली। हौंडा एजेंसी से पापा ने साठ हजार कि बाईक पसंद की। जब वो चेक काट कर बाहर आए अचानक मेरे दिमाग में एक सवाल आया और मैंने डरते डरते पूंछ हि लिया ” आप लोगों ने यहां पर रुपए कम करबाए क्या ? मै बचे पैसों से ड्रेश भी खरीद लूंगी ।””
मां पापा के पास मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं था वो कैसे बताते कि यहां वो एक रुपए भी कम करवाने कि होशियारी नहीं रखते थे । मौन द्वारा उन्होंने कई बिडंबनाओ पर पर्दा डाल दिया।
धूप ,बरसात कड़ी ठंड में काम करने वालों से लोग मोल भाव कर पैसे कम करवाते है।
फिर वही लोग बड़े बड़े शोरूम पर जाकर थोड़ी सी चमक धमक के पीछे ढ़ेर सारा पैसा लूटाते हैं
यही शायाद होशियारी है
✍️ रश्मि गुप्ता@ ray’s Gupta