होली – 1
होली – 1
नव तरुणी मधु से भरी हुई,
जब निकल निकट से जाती हो…
नव यौवन की खुशबू बिखेर,
सब तितर-बितर कर जाती हो…
कृश तनु पर अति बोझिल यौवन,
जब सांसो के संग हिलता हो…
जब लेती सांस प्रलय होती,
जब छोड़े जीवन मिलता हो…
अतिशय गुरुर से रंगी हुई पर लाल गुलाल लगाने से,
हुई लाल लाल सी दिखती हो, पर हरी हरी हो जाती हो…
जब निपट अकेले होते हों, तारों से जगमग रातों में,
वो लंबी सांसें लेती हो, तुमको हिचकी आ जाती हों…
तो समझो जीवन में रंग हैं, तन मन रंग जाना होली है…
भारतेंद्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान