होली —— चलो आज होली के पट खोल दें हम
चलो आज होली के पट खोल दें हम।
आओ कि द्वार, दिल के भी अब खोल दें हम।
चलो प्यार बांटें लोगों से हिलमिल।
ऋतु भर लुटाया है फूलों ने खिल-खिल।
चलो रंग लगायें नये साल को हम।
खुशनुमा भी बनाएं,नये साल को हम।
बड़े भाग से मिलता है ये होली दुबारा।
भले! वैर भूलो, ये है आग्रह क्या खारा?
बड़े वैरी रस्ते को रोके खड़ा है।
अजी! युद्ध, दूषण, प्रदुषण अड़ा है।
गला कट रहा है बहा खून जाता।
अगर वैर रखना तो इससे ही भ्राता।
यहाँ आदमियत के आँखों में आंसू।
जुटो आ चलें आज पोछें ये आंसू।
घृणा फैलती गंदगी की तरह है।
मची आपाधापी है क्यों? क्या वजह है।
चलें अपने अपने ही मन को टटोलें।
दिलों के सभी बन्धनों को भी खोलें।
इस होली को पूरे ही अर्थों से भर दें।
और पर्वों के सारे तदर्थों से भर दें।
अजी फाग गाएँ तो गीतों में मन हो।
इस जीवन के सारे ही एवम् तपन हो।
जाये तो कहते जाये कि हो ली
तुम्हारी ऐ! मानव, तुम्हारी मैं होली।
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