*होरी के रंग*
रसिया होरी खेलो मोरे संग ।
लगा दो लाल नीले पीले रंग ।
रंग दो सब सखियों के अंग ।
घोंट लो जमकर मीठी भंग ।
देखो कहीं पड़े न रंग में भंग ।
जमे जो रंग गुलाल की जंग ।
सखियाँ अपने पिया के संग ।
नाँच रहीं पी पी करके भंग ।
बहे गलियन में जमुना गंग ।
जवाँ ओ सब बच्चे बूढ़े चंग ।
भूल गये सब ये बेढंगे ढंग ।
करें सब मिलजुल कर तंग ।
देखन बारे सब रह गये दंग ।
चुन्नु मुन्नु पुन्नु गुन्नु और मलंग ।
गूँज रही फागुन गीतों की तरंग ।
ओम् को दिख रहे दो दो ऋंग ।
ओमप्रकाश भारती ओम्
बालाघाट मध्यप्रदेश