‘होते मानव के लिए, मानव के अधिकार’ : दोहे
छंद:-दोहा
(दो पंक्तियाँ, चार चरण, प्रति पंक्ति १३, ११ मात्राओं
पर यति. विषम चरणों के प्रारंभ में जगण निषिद्ध)
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सारा नशा उतार दें हिन्दुस्तानी मर्द.
पाकिस्तान चला रहे असली दहशतगर्द..
गला काटकर जो करे, मज़हब का व्यापार.
दानव वो, मानव नहीं, नहीं किसी का यार..
मोह लोभ के साथ में, त्याग दीजिए स्वार्थ.
आतंकी अब सामने, शस्त्र उठा लें पार्थ..
होते मानव के लिए, मानव के अधिकार.
आतंकी मानव नहीं, मौक़ा है दें मार..
झंडा पकिस्तान का. ताने असुर समाज.
गद्दारी जो भी करे, दोज़ख का दें राज..
कश्मीरी पंडित बनें, सिख गुर्जर औ जाट.
घाटी में उनको बसा, खड़ी करें अब खाट..
कर्मों की पाकर सज़ा, आज मरा बुरहान.
अम्मा बनकर रो रहा, पीछे पाकिस्तान..
पाकिस्तानी दे रहे, नफरत का सन्देश.
दुनिया अब तो मान ले, आतंकी वह देश..
लेते नाम कुरान का, करते काम तमाम..
अनुयायी भटके हुए, पछताये इस्लाम..
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प्रस्तुति: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’