होता नहीं किसी का
होता नहीं किसी का यहाँ पर सनम कोई
खाते हैं क्यों हमेशा वो झूठी क़सम कोई
हम ज़िन्दगी की राह में क्यों दूर हो गए
अरमाँ थे दिल में जितने भी वो चूर हो गए
परवाह अब नहीं है करों सर क़लम कोई
खाते हैं क्यों हमेशा वो झूठी क़सम कोई
क्यों अंजुमन में अपनी वो फ़रियाद कर रहे
यादों की वो हवेली में क्यों याद कर रहे
शब भर सता रहा है सितमगर को ग़म कोई
खाते हैं क्यों हमेशा वो झूठी क़सम कोई