होटल में……
इस दुनियांरूपी होटल में हम
कुछ दिन आकार हम ठहरे है
कुछ तो इस कमरे में बैठे है
तो कुछ उस कमरे में जा बैठे है
जब आंगन में कुछ धूप खिली
खुद कली भँवरे से जा है मिली
रोशनी झरोखों से बह निकली
चौक-चूल्हों में लकड़ी सुलग चली
तब सब बाहर आ मिल बैठे है
चाय की चुस्की संग मेथी के परेठे है
देखो पुनीत जी भरी दोपहरी में
गर्म रजाई तबियत से लपेटे है
इस दुनियां रूपी होटल में हम ..
कुछ दिन को आकार हम ठहरे है