है वही, बस गुमराह हो गया है…
मेरी कलम से..,
आनन्द कुमार
तब भी लाजवाब थे, अब भी लाजवाब हो,
बस थोड़े से ना जाने क्यूं, बेहिसाब हो गए हो।
पूछा मैंने सभी से, लेकिन कोई बताया नहीं,
बस एक शख़्स ने मुस्कुरा के, घुमाया वहीं।
लगा नागवार तो पूछा, नाम न छापने के शर्त पर,
बताया उसने, है वही बस गुमराह हो गया है ।