है अर्जुन उठा लो गाण्डीव आज
ये रणभूमि है।
रणचण्डी का द्वार।।
हे अर्जुन उठा लो गाण्डीव आज।
है नहीं वो हस्तिनापुर न है कोई एक दुशासन आज।।
हे अर्जुन लक्ष्य संधान कर लो खंडित हो रहा
कलुषित हो रहा असंख्य द्रौपदी का मान आज।।
हे सब्यसाची हे कौन्तेय
सारथी आज तुम हो ।आज तुम्हीं हो तारणहार ।
हे अर्जुन गाण्डीव उठा लो ।
उठो अब लक्ष्य संधान कर लो।
असंख्य याज्ञ्यसैनी के कष्ट हर लो ।
कर रही हैं करुण पुकार।।
हे अर्जुन गाण्डीव उठा लो।
विध्वंशित करो आतंक का राज।।