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7 Dec 2019 · 3 min read

हैवानियत की घटनाओं और सोचने की जरुरत

विगत दिनों हैदराबाद में एक महिला डॉक्टर प्रियंका के साथ हैवानियत का मामला प्रकाश में आया । मामले के सभी पक्षों एवं वास्तविकता को जानने के बाद पूरा देश सन्न रह गया । जहां एक ओर डॉ . प्रियंका के घरवाले, संगी – साथी एवं परिचित स्तब्ध थे वहीं दूसरी ओर उसके साथ हैवानियत करने वाले नरपिशाचों को कड़ी सुरक्षा में पुलिस द्वारा ले जाए गए और हिरासत में मटन करी खिलाया गया । एक ओर जहां गैर राजनीतिक एवं शैक्षनिक संगठनों ने न्याय के लिए प्रदर्शन किया वहीं दूसरी ओर धर्म के ठेकेदारों ने भी इसपर अपनी रोटियों को बखूबी सेंकने का काम किया । ऐसे – ऐसे कथन सामने आ रहे थे कि कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था । हम पता नहीं किस दुनिया में थे ? क्यों हमारी कानून व्यवस्था शुरुआती दिनों से ही इतनी शिथिल है ? अभी देश डॉ . प्रियंका के सदमे से उबरा भी नहीं था कि बिहार में बक्सर एवं समस्तीपुर में ऐसी ही हैवानियत की तस्वीरें सामने आईं । इन दोनों स्थानों की घटनाएं हैदराबाद से भिन्न इसलिए हैं कि इन दो स्थानों की पीडि़ताओं का नाम भी किसी को मालूम नहीं था और जब मरने वाले ही गुमनाम हैं तो मारने वालों का क्या कहा जाए। उन्हे इतनी बेरहमी से जलाया गया था कि , कहीं सिर्फ हाथ तो कहीं सिर्फ पांव ही मिल पाए । पुलिसिया कारवाई फिलहाल चल रही है । खैर. . . . . बात करते हैं हम डॉ . प्रियंका की । समाचार पत्रों, न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से लगभग हम सभी संपूर्ण घटनाक्रमों से वाकिफ हैं । पूरी बात यह थी कि एक महिला डॉक्टर अकेले लौट रही थी, रास्ते में कुछ वहशी दरिंदों ने उसके साथ हैवानियत एवं दरिंदगी की सारी हदें पार कर दीं । यहां तक कि उसे जिंदा जला दिया । अगले दिन उसकी अधजली लाश एक पुलिये के नीचे पाई गई । चूंकि , डॉ प्रियंका की बातचीत अपने घरवालों से हुई थी उसके आधार पर
किसी अनहोनी से आशंकित हो परिजनों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी । पुलिस ने भी काबिलेतारीफ फुर्ती दिखाई मगर डॉ. साहिबा को बचा न सकी । बहरहाल पुलिस ने मामले के सभी आरोपियों को हिरासत में ले लिया । आरोपी जैसे ही हिरासत में लिए गए वैसे ही सोशल मीडिया पर लौगों की अजीबोगरीब बयानबाजियों का दौर शुरु हो गया । लोगों ने इसमें भी हिंदु- मुस्लिम कोण ढूंढ लिया और उसी को आधार मानकर अपने अपने तरीके से मामले को सुलझाने की वकालत करने लगे । एक का दलील था कि, तीन अन्य को फांसी दो अथवा न दो पर मुस्लिम आरोपी को जरूर फांसी दो क्योंकि , इस्लाम में इस गुनाह की सजा मौत है । सवाल यह है कि, क्या उनके इस घिनौने कुकृत्य के बाद कोई भी धर्म बच गया था ? जवाब था कि, हां । भले ही इस जघन्य अपराध को अंजाम देने से पहले वे किसी धर्म अथवा मत के रहे होंगे पर इसके बाद वे हैवान धर्म के हो गए थे ।
उन चंद हैवानों के चलते हमने आपस में छींटाकशी शुरु कर दी । हम शायद आवेश में आकर यह भूल जाते है ं कि वे चार दो समुदाय से थे फिर भी एक बर्बरपूर्ण हरकत के लिए एकजुट हो गए । अगर दो विभिन्न मतों के लोग कुकर्म करने के लिए एकजुट हो सकते हैं तो क्या हम उसके खिलाफ एकजुटता से खड़े नहीं हो सकते ? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है जिस पर हम सभी को गंभीर चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है । तभी हम अपने बीच से इन दरिंदों का वास्तविक सफाया कर पाएंगे ।

विक्रम कुमार
मनोरा, वैशाली

Language: Hindi
Tag: लेख
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