हैरान था सारे सफ़र में मैं, देख कर एक सा ही मंज़र,
हैरान था सारे सफ़र में मैं, देख कर एक सा ही मंज़र,
मुसाफ़िर से हुआ इश्क़,कि रास्ते ही साथ चलने लगे ।
हम कश्मकश में हैं अभी तक,कि दोस्त हैं या दुश्मन वो
जिन हाथों ने ज़ख़्म दिये, वही मरहम अब मलने लगे।
क़ीमत सच बोलने की ,कुछ इस तरह चुकाई मैंने,
नूर थे जिन की आँखों के, उनकी नज़र में खलने लगे।
ये ज़िंदगी कोई काम नहीं,और काम नहीं है ज़िंदगी
मशरूफ हम खुद में जो हुए,हर काम कल पर टलने लगे।
ये दिल और दिमाग़ में , बनती नहीं सदियों से कभी
एक ने हसरतों को बहलाया,दूसरे के अरमान मचलने लगे
मनचाही सूरत दिखाते हैं ये , अक्स नहीं दिखाते अब
इंसानों की सोहबत में बिगड़े, आइने भी अब छलने लगे ।
इश्क़ है नाम फ़ना होने का, दूसरे के वजूद के लिये
शामें सुनहरी हो सकें, इसलिये दिन जल्दी ढलने लगे।
सर्दियों के मौसम में , सूरज की ख़्वाहिशें बेमानी हैं
ज़िंदगी को गरमाहट देने ,ख़्वाब मेरे अब जलने लगे ।
मुलाक़ात के सिलसिले ,धीरे धीरे घटते अब दुनिया में
सुना है अब बंद कमरों में ,लोग मशीनों पर टहलने लगे ।