“ हैदराबादी चिंबपाँजी “
(व्यंग )
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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अधिकांशतः लोक आनक निष्क्रियता क उजागर करैत अछि आ अपने मियां मिठू बनि प्रशंसाक पात्र बनबाक प्रयास करैत अछि ! मुदा निष्क्रियता हमरो गत्र -गत्र मे पैइसल अछि ! भाषा, संस्कृति ,गाम ,समाज आ परिवेश सं दूर रहलहूँ ! भाषा बिसरि गेलहूँ ,यज्ञ ,मुंडन ,उपनयन ,विवाह आ विधि -विधान क महत्व नहि बुझि सकलहूँ !
हैदराबाद मे रहि बच्चों सब “ तेरेको ….मेरेको “ बजइत अछि ! आब काज धंधा बंद भ गेल ! स्कूल कॉलेज बंद ! सब विचारि केलहूँ “ गामे चलू !” कनिओ केँ नैहर सटले “ पिलखवाड “ छनि ! गाम “ मगरपट्टी” मे त अपन हाजिरी बनल रहत ! स्नानों जे करय लेल “ महराजी पोखरि “ गेलहूँ त बुझू कैलाशक दर्शन भ गेल !
हमरा लोकनिक गप्प छोडु ! बच्चा सब त गाम आबि माल -जाल सं बत्तर बनि गेल ! मिथिलाक माल- जाल त मैथिली बुझइत अछि मुदा हैदराबादी चिंबपाँजी कतय ? हमहूँ कोनों न कोनों मैथिली ग्रुप सं जूडि गेलहूँ ! आर किछु नहि ,जे कियो किछु लिखइत छलाह हम अपन कमेन्ट मे “ जय श्रीराम “ जय हनुमान “ राधे राधे “ इत्यादि लिख दैत छलियनि ! ओहो रोमन मे ,” JAY SHREERAM “ “JAY HANUMAN “ “RADHE RADHE “ !
मैथिली लिपि क बात जुनि करू ,मैथिली देवनागरी हमरा नहि अबैत अछि ! आब इ नहि पुछब कि “ जे आहाँ केना इ सब लिखलहूँ ? जहन आहाँक मैथिली नहि अबैत अछि “! इ त हमर सौभाग्य थिक जे डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “ भेट गेलाह ! हुनके सं लिखेलहूँ !
आहाँ लोकनिक
हैदराबादी चिंबपाँजी ( मैथिल )
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “