हैं सखी रंग – रंगदो ना गुलाल (होली गीत)
प्रिय मोरी सखी तुम रंग-रंग दो ना रंग गुलाल।
फाग की तानें छिडती चेहरा कर दो ना लाल।।
प्रिय मोरी सखी………………. ।
सब संग खेले हे होली ऐसों हैं योंही त्यौहार।।
नाना प्रकार रंगों में कौनसा प्रिय रंग तुम्हार।।
लादु मोरी वोही रंग तुम्हें रंगण को इस साल।
प्रिय मोरी सखी…………………. ।
बादल भी अब लाल – गुलाल रंगों से होवत हैं।
होली पर सप्त रंगों की वों ओंढनी ओढत हैं।।
हैं सखी खेलण री पहल करदों ना तुम चाल।
प्रिय मोरी सखी…………………. ।
उर में चाहत सी हैं थारे संग खेलण री होली।
रंगों के कलष से तने बधाऊ कैसे करू चोली।।
अब क्यों ना कर दों ना लाल बुरा होता हाल।
प्रिय मोरी सखी…………………. ।
चम-चम के चिंगारे हैं रंगों में हम तो न्यारे हैं।
लहर-लहर उर में मचलती मन के हम सितारें हैं।
मन की इच्छा हैं क्यों न फाग खेले इसी साल।
प्रिय मोरी सखी………………….. ।
का रंग खेलु मैं होली का,उका मन न होता लाल।
रंगीले मौसम में सब के लिए चलती गीतों की चाल।।
संग में मिलों रणदेव के ताकि दिल का न हों हलाल।
प्रिय मोरी सखी…………………..।
प्रिय मोरी सखी तुम रंग-रंग दो ना रंग गुलाल।
फाग की तानें छिडती चेहरा करदो ना लाल।।
रणजीत सिंह “रणदेव” चारण
मुण्डकोशियां