हे वृक्ष देवता ! नमस्कार
हे वृक्ष देवता ! नमस्कार
है प्राणि-मात्र से तुम्हें प्यार
तुम हो जग के जीवन-दाता
तुमसे जग प्राण-वायु पाता
तुम ही आहार जुटाते हो
तुम हो पावस के सूत्रधार
तुम दूर प्रदूषण करते हो
वसुधा में जीवन भरते हो
औषधियाँ देन तुम्हारी हैं
तुम करते अगणित चमत्कार
नित लूट तुम्हें हम लेते हैं
झकझोर तुम्हें हम देते हैं
पर लेते तुम प्रतिशोध नहीं
सचमुच तुम हो अतिशय उदार
तुम सक्रिय सतत, नहीं थकते
तुम सूखा-बाढ़ रोक सकते
तुम ऋषियों-मुनियों के आश्रय
तुम बढ़ते, गढ़ते रोजगार
– महेश चन्द्र त्रिपाठी