हे विनीत विनम्रकुलश्रेष्ठ अविरामस्वामी !
हमारे तन नीड़ के नेह की रमण मंदिर के मणि दीप, मस्जिद से निकली अज़ान स्वर की आस्थात्मक शब्दधनी एवं शिक्षार्थियों के पलकों की पालकी में शिक्षा-मुस्कान की मोती लुटानेवाले ‘परमादरणीय’ को अश्रुपूरित नयनों से यह सम्मान पत्र अपने हृदय स्पंदन के साथ समर्पित करते हैं । यह अभिनंदन-पत्र परम श्रद्धेय को अभिवादन लिए उपस्थित सभी ज्ञानवीथियों के समक्ष यह विद्यालय परिवार सादर अर्पित करते हैं।
हे प्रज्ञा के प्रखर महानुभाव !
आपके सेवानिवृति से हम भावुक हैं, भावनाओं की प्रबलता होने से वाणी मूक हो गई हैं और दृग भींगकर सूज गये हैं । फिर भी कबीर की यह वाणी मुझे संबल प्रदान कर रही है-
‘मन मुरीद संसार है गुरु मुरीद कोई साध।
जो माने गुरु वचन को ताका मता अगाध॥’
हे बुद्धि-विद्या के अनन्य उपासक !
आप शैक्षणिक मधुवन के प्राणों के प्राण हैं । आपकी पारदर्शी मेधा का दीपमणि सरकारी विद्यालय के ज्ञान गगन का श्रृंगार है । आपके मानस मंदार से फूटनेवाली प्रतिभायुक्त वर्षाजल की रागिनी और बुद्धि-विद्या की मधुर झंकार लिए है । आपके ज्ञान-कलश से छलकते रस का छककर जिसने रसपान किया, वह हो गया ज्ञान का दिनमान और विवेक का वागीश। आपके जैसा पारदर्शी चरित्रवान और कुशल समय प्रबंधक फिर कहाँ खोज पाऊँगा?
हे विनीत विनम्रकुलश्रेष्ठ अविरामस्वामी !
आप हैं कला के कलाधर, विद्या के वारिद और रेणु की मणिमाला में मेरु के मनका गूँथनेवाले कुशल कलावंत । वस्तुत: आप आधुनिक युग के भगीरथ जिनके तप त्याग के तटों में बंधकर सफलता की परिभाषा सृजित हुई और शिक्षार्थियों सहित सहकर्मियों को सींच-सींचकर उसे पुष्पित एवं पल्लवित कर किया है। आप सदा निर्भीक, निर्विवाद, निष्कलंक, निश्छल और निःस्पृह रहे और आपका पासंग गुण भी हममें आ जाए, तो इसतरह की कल्पना मात्र से ही हम सबों का मन रोमांचित हुए जा रहे हैं।