“हे वसन्त, है अभिनन्दन..”
नव कोपल, कलिका, कर दे,
मुझको भी, नख से शिख, उज्ज्वल।
पीत पुष्प, प्रेरित कर देँ,
हर एक प्राणी मेँ, प्रेम नवल।
वाणी पर, सँयम रक्खें,
गुँजार, भ्रमर सा हो निर्मल।
नृत्य, तितलियों सा मोहक,
मन मेँ स्नेहिल, सद्भाव, सरल।।
हो हरा-भरा, यह जग-उपवन,
अम्बर से अमृत, जाए बरस।
लहराए, बासन्ती चूनर,
हो वसुधा का, श्रँगार सरस।।
मातु शारदे, वर दे,
विद्या और विवेक सँग, ओज प्रबल।
हे वसन्त, है अभिनन्दन,
भर दे “आशा”, आलोक धवल..!
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