हे! राम
गीत… (हरिगीतिका छंद)
हे! राम आ जाओ हृदय में, नष्ट हो दुर्भावना।
विनती यही दरबार में मैं, कर रहा आराधना।।
उत्कर्ष हर इंसान का हो, स्वप्न हों पूरे सभी।
बोये नहीं कोई किसी के, राह में कांटे कभी।।
चलते रहें बढ़ते रहें सब, पूर्ण मंगल कामना।
हे! राम आ जाओ हृदय में, नष्ट हो दुर्भावना।।
घटती चली जाये नहीं यूँ, नम्यता आचार से।
पीड़ा नहीं कोई यहाँ दे, विष भरे उद्गार से।।
हूँ चाहता अनुराग हो मन, और हो सद्भावना।
हे! राम आ जाओ हृदय में, नष्ट हो दुर्भावना।।
आदर करें सम्मान दें जो, रह रहे घर में बड़े।
सेवा करें माता-पिता की, और जो द्वारे खड़े।।
सन्मार्ग पर चलते रहे यूँ, कर रहे हों साधना।
हे! राम आ जाओ हृदय में, नष्ट हो दुर्भावना।।
हे! राम आ जाओ हृदय में, नष्ट हो दुर्भावना।
विनती यही दरबार में मैं, कर रहा आराधना।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)