#हे राम !
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★ #हे राम ! ★
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नहीं मांगती मृग सोने का
न चाहे तेरी अयोध्या का अधिकार
नहीं सुहाते पहरावे गहने
न फूलों का शृंगार
कलियां फूल सब मसल दिए
उजड़ा सपनों का संसार
महक मसली ललक कुचली
दानव की शेष रही फुंकार
उन्नाव कठुआ कलंक-कथा
किसी पर पड़े न इनकी छांव
नगरोटा सासाराम सुलग रहे
धू-धू कर जलता नगांव
भीतर-भीतर दहक रहे
केरल और वो बंग
जीने का कोई ठौर नहीं
गोदी ले ले माता गंग
भंवरी साथिन न रही
नैना जली तंदूर
जेसिका धांय फूंक दी
सत्ता के नशे में चूर
किसको भूलें किसको याद करें
सबका अपना-अपना दाम
रावण भेस बदलकर निकल पड़े
मोम की बाती हाथ में थाम
इनसे तो कंजर भले
बांछड़ा बेड़िया लोग
बेटी बिकती तो पेट भरें
करते नहीं कुछ ढोंग
द्वारिकाधीश चुप-चुप-से हैं
सोये हैं महाकाल
कब खोलेंगे नेत्र तीसरा
भारत की बेटी करे सवाल
हे राम ! जानकी कारने
सागर-सेतु दिया बनाय
घर-घर लंका सज रही
करें अब कौन उपाय . . . ?
९४६६०-१७३१२
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)