#हे मा सी चंद्रिके
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★ #हे मा सी चंद्रिके ! ★
मनभावन हे चंद्रिके
ज्योतिकलश छलकाती हो
चंदा ठहरे अपने ठौर
सबसे गले लग आती हो
उल्लसित हुलसित पत्रिके
लेखनी जैसे लुभाती हो
मनभावन हे चँद्रिके . . . . .
मेरे अपनों से जा कहना
ओ३म ओ३म उच्चार करें
मिलेंगे फिर से अगले जनम में
धीरज अबकी बार धरें
इतनी सी विनती भद्रिके
वैसे भी वहाँ तुम जाती हो
मनभावन हे चंद्रिके . . . . .
नयनों के कोटर रिक्त हुए
स्वप्नपखेरू देस गये
आशा कुंजड़िन बावरी
नित नित लिखती लेख नये
तमसहरणी नदरिके
अभयअक्षय उपजाती हो
मनभावन हे चँद्रिके . . . . .
श्यामल मेघ स्मृतियों के
इक इक करके गौर हुए
उरउपवन भीजा भीजा
और थे पथ अब और हुए
शीतल मा सी स्नेहार्द्रिते
झुलसे मन हुलसाती हो
मनभावन हे चंद्रिके . . . . .
किससे कहें कैसे कहें
यहाँ अपना कोई राम नहीं
यहाँ से उजड़े बसें कहाँ
कोई दूजा द्वारिकाधाम नहीं
नभमस्तक खिलती तंद्रिते
जा सागर छुप जाती हो
मनभावन हे चंद्रिके . . . . .
रश्मियों का उष्मिल बंधन
सुखकर मरने जीने को
सुख दुख आयु मथ रहे
कौन हलाहल पीने को
रजतरंजित रात्रामृते
अहो अहो नहीं मिल पाती हो
मनभावन हे चंद्रिके . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२