हे! पार्थ सुनो परिचय मेरा ।
हे ! पार्थ सुनो परिचय मेरा ।
हम में तुम में कण- कण में मैं
सर्वत्र सदा अभिनय मेरा ।।
फूलों कलियों काँटो में मैं
सौरभ पराग मधुपों में मैं
सुख- दुःख के निज विषयों में मैं
लय- प्रलय धरा अम्बर में मैं
उस युग में था इस युग हूँ
मैं युगों रहूँ निश्चय मेरा
अवनति उन्नति उपक्रम भी मैं
ऋतु समय चक्र का भी मैं
राधा- मोहन दोनों ही मैं
सारे जग का सत्क्रम भी मैं
पीयूष गरल विषहर भी मैं
क्यों मन में हो संशय मेरा
मैं आदि- अन्त अक्षय अगम्य
अति सूक्ष्मरूप संसार भी मैं
मैं महाकाल का शंख- नाद
तद्आत्म रूप विस्तार भी मैं
मैं चिर- परिचित वह ब्रह्म- नाद