हे ज्ञानेश्वरी माँ
हे ज्ञानेश्वरी मैया मेरे हृदय विराजो माँ,
तुम शुभ्र वस्त्र धारिणी,तेरी हंस सवारी माँ,
है धवल रूप तेरा सबसे ही न्यारा माँ,
तुम कलुष हारिणी हो,गति यति लय में माँ,
तुम कवियों की कविता,गायक का स्वर हो,
नर्तक के घुंघरू भी,चित्रों के रंग भी हो,
पंछी का कलरव माँ ,तुमसे ही तो है,
एक तुम ही हो शास्वत बाकी सब नश्वर है,
तुम तम को हरती माँ दीपक की लौ में हो,
कबिरा की साखी में, मीरा की धुन में हो,
सूरज की किरणों में ,पुष्पों के रंग में माँ
मुझ पर भी कृपा करो,मेरे हृदय विराजो माँ
हे ज्ञान दायिनी माँ मेरे हृदय विराजो माँ
वर्षा श्रीवास्तव”अनीद्या”