हे ! जग स्वामी
हमरौ नइयां दूसर कोई,
जग में नाथ तुम्हारे ।
सुन लो विपदा हमरी,
तुम्हीं सब संकट टारो ।
चाह नहीं धन सम्पत्ति की,
प्रभु तुम्हरो आशीष पाऊं ।
तज कर मोह – माया ,
तिहरों ही जस गाऊं ।।
मैं तों चाहूं भक्ति तुम्हारी,
तन मन सब तुम पै बारौ ।
हे दयानिधि – हे जगदीश,
तनिक दया दृष्टि हम पे डारौ ।
हम तो मूरख जग जानी,
तुम्हरी कला जगत बखानी ।
अब हौं नाथ तुमरी शरणा,
हर लो पीडा़ हे ! जग स्वामी ।।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)