हे कान्हा मेरे ! बता तू कहां है ?(श्री कृष्ण जन्माष्टमी विशेष )
हे कान्हा ! बता तू कहाँ है ? ,
तेरे लिए ये दिल परेशां है ।
कहाँ नहीं तलाश किया तुझे ,
मंदिर -मस्जिद या गुरूद्वारे में ,
कहाँ है तेरा ठिकाना ? रहता तू जहाँ है…..
पर्वत की कन्दराएँ या यमुना किनारे ,
बाग़-बगीचों में या खडा कदम्ब के सहारे ,
प्रकृति के किस छोर में तू रवां है ?……
बच्चों में मासूमियत रह नहीं गई,
इंसानों में इंसानियत रह नहीं गयी ,
ऐसे में असम्भव है की मिले तू यहाँ …..
अँधेरा है संसार में अमावस की तरह,
तू भी तो आया था कभी इसी तरह ,
अब क्यों नहीं आ रहा तू मिटाने पाप की आंधियां।
तू गर मेरे दिल में छुपा हुआ है ,
तो तुझसे हमारा हाल क्या छुपा है ,
मेरी रूह के कष्ट मिटाकर हो जा जलवा नुमां……..
अब तो तू अपना वायदा निभा दे ,
धरती को पापियों के बोझ से मुक्त कर दे,
ना उजड़े अब कोई और आशियां …
इससे पहले की बहुत देर हो जाए,
आशा लगी है की तेरे दर्शन हो जाए,
अतिशीघ्र कल्कि अवतार में हो जाओ अब रवां..