हेमन्त ऋतु भाग-2 (प्रकृति चित्रण)
(१)
स्वच्छ अम्बर कैनवास पर,
खग वृंद हर्ष विचरने लगे हैं।
हरित तृण की नोक ऊपर,
ओस कण मोती धरने लगे।
अरण्य प्रदेश के प्राणी अब,
सर्द रहित घर ढूंढने लगे हैं।
विष्णु हृदय उल्लास भर अब,
ऋतु हेमन्त स्वर गाने लगे हैं।
(२)
सर तटनी कुँए वापी सब,
नीर बयार भोर निकलने लगी हैं।
अमरूद फल कंदूक सम लटके,
बेरी भी तो अब फलने लगी है।
तन अंतर तक वायु भी,
नित्य ठंडक क्यों भरने लगी है।
विष्णु हर्ष धरा मंडल में,
ऋतु हेमन्त अब बढ़ने लगी है।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
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