हृदय परिवर्तन जो ‘बुद्ध’ ने किया ..।
एक अहिंसक हिंसक बन गया,
नरेश प्रसेनजित के राज्य में,
अंगुलियों की माला पहन कर,
पथिक की हत्या कर तलवार से ,
हृदय परिवर्तन जो ‘बुद्ध’ ने किया ..। ।१।
चल पड़ा अज्ञानता के पथ पर ,
तिरस्कार मिला जो सच्चे मन में ,
सुध-बुध अपना खोया वह ऐसा ,
बन गया डाकू अंगुलिमाल वह ,
हृदय परिवर्तन जो ‘बुद्ध’ ने किया ..। ।२।
भय से थर-थर कंपित होते ,
श्रावस्ती के सब नर-नार नरेश ,
बुद्ध की करुणा ऐसी मिल गयी,
बन गया भिक्खु अहिंसक अंगुलिमाल से ,
हृदय परिवर्तन जो ‘बुद्ध’ ने किया ..। ।३।
मैं ठहरा हूंँ तुम भी ठहर जाओ ,
वृक्ष का पत्ता तोड़ कर फिर लगाओ ,
कर न सका अंगुलिमाल यह,
जीवन को तुम दे नहीं सकते ,
प्राणों को हरने का अधिकार क्यों ,
हृदय परिवर्तन जो ‘बुद्ध’ ने किया ..।।४।
बुद्ध के शरण में संघ में आया ,
भिक्षाटन को नगर में गया ,
समझ अंगुलिमाल चोट है पहुंँचाया ,
शांत भाव से बुद्ध को बताया ,
हृदय परिवर्तन जो ‘बुद्ध’ ने किया ..।।५।
कर्मों का फल उसने है पाया ,
दुख देने से दुख ही मिलता ,
सत्य ज्ञान का हृदय में दीप जलाया ,
अंगुलिमाल था अब ‘बुद्ध’ का शिष्य कहलाया ,
हृदय परिवर्तन जो ‘बुद्ध’ ने किया ..।।६।
✍ बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।