हृदय की पीर
कहीँ पे राँझा बिकता है कहीँ पे हीर बिकती है
कि पैसे के लिए नारी की अक्सर चीर बिकती है
ये कुदरत का करिश्मा है या वेश्या की अदाकारी
सुना है उसके कोठे पे हृदय की पीर बिकती है
– -सागर यादव ‘जख्मी’
कहीँ पे राँझा बिकता है कहीँ पे हीर बिकती है
कि पैसे के लिए नारी की अक्सर चीर बिकती है
ये कुदरत का करिश्मा है या वेश्या की अदाकारी
सुना है उसके कोठे पे हृदय की पीर बिकती है
– -सागर यादव ‘जख्मी’