हुनरमंद लोग तिरस्कृत क्यों
हुनरमंद लोगों में,,
कला का समावेश तो है,
उनके व्यक्तित्व में नेतृत्व का अभाव,
पूंजी का अभाव,
एक और खामी,
जो जोखिम लेने से रोक देती है,
.ः
इन सबके मध्य,
हस्त के साधक,
तथाकथित धर्म उनको,
तिरस्कृत करता है,
विश्वकर्मा दिवस,
साल में दो बार,
बडी शान से मनाया जाता है ।
मात्र मस्तिष्क में,
ये पक्का करने के लिए,
वे तुम्हारे आराध्य है,
ये सब तुम्हारे पास है ।
सब उनकी महिमामंडन होता है ।
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तुलना हो
या
हो प्रतियोगिता,
करनी ही क्यों है ।
सहज भाव से रहिये ।
सुखद जीवन जी लिजिये ।
हुनर को निखार लीजिये ।
.
उनका नेतृत्व कौन करता है,
और दमन कैसे हो जाता है,
वो भी आसानी से,
ये सब व्यवस्थायें हीनभावना से ग्रस्त कर
मनोबल तोड़कर अंजाम दिये जाता है,
.
ये लोग देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं
लघु मंझले कुटीर,
जिसमें खेती वा पशुपालन भी सामिल है,
निजी क्षेत्र में,