हुए अजनबी हैं अपने ,अपने ही शहर में।
हुए अजनबी हैं अपने ,अपने ही शहर में।
बदला हुआ है मंजर अपने ही शहर में।।
खिलते थे जहां फुल मुहब्बत की बाग में।
है नफरतों का बाजार अपने ही शहर में।।
निकुम्भ के कलम से
हुए अजनबी हैं अपने ,अपने ही शहर में।
बदला हुआ है मंजर अपने ही शहर में।।
खिलते थे जहां फुल मुहब्बत की बाग में।
है नफरतों का बाजार अपने ही शहर में।।
निकुम्भ के कलम से