हुईं वो ग़ैर
ओय ख़ैर रब्बा ख़ैर
ओय ख़ैर रब्बा ख़ैर
मुझसे इस दुनिया ने
साधा यह कैसा वैर…
(१)
शाम-सबेरे छत से
कितनी हसरत से
मुझे जो देखती थीं
निगाहें हुईं वो ग़ैर…
(२)
चांद को चाहें जैसे
सागर की लहरें
मुझे जो चाहती थीं
बांहें हुईं वो ग़ैर…
(३)
दुआ में रात-दिन
साथी के तौर पर
मुझे जो मांगती थीं
पनाहें हुईं वो ग़ैर…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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