हुआ तभी ये भान
साया जब माँ बाप का, सर से हटा सुजान ।
बूढ़ा होने का मुझे, …..हुआ तभी से भान।।
रिश्ता वो जो स्वार्थ का,हो जाए बेस्वाद ।
कर देना ही ठीक है, उसे शीॆघ्र आजाद ।।
रमेश शर्मा..
साया जब माँ बाप का, सर से हटा सुजान ।
बूढ़ा होने का मुझे, …..हुआ तभी से भान।।
रिश्ता वो जो स्वार्थ का,हो जाए बेस्वाद ।
कर देना ही ठीक है, उसे शीॆघ्र आजाद ।।
रमेश शर्मा..