#हुँकार
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★ #हुँकार ★
रपट गया हूँ फिसलन से पराजित नहीं हुआ
लौट आया हूँ फिर से खेलने जीवन का यह जुआ
पाँव धरती पर थे मेरे केवल दृष्टि क्षितिज पर थी
गिर तो गया मैं उसके माथे से पानी बहुत चुआ
दाढ़ें हिल गयीं उसकी बाल मेरे बिखर गये
प्रस्तर की मूरत भूल से समझ बैठा वो मालपुआ
एक नाटक मंचित होता बार-बार इस मंच पर
दीपक जलता ही रहा भाग्यबली नायक हुआ
तीरों तलवारों की बात न कर सब जानता हूँ मैं
जब भी उठा हाथ मेरा सवार अश्व सहित दो हुआ
मानता हूँ मैं कि अभी कुछ ही तारे गगन में हैं
सूर्य ने सौमित्र से पहले प्राची को भला कब छुआ
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२