“हिसाब”
हिसाब
धनपत और मोहन आपस में अच्छे दोस्त थे। दोनों का जैसा नाम वैसा काम था।धनपत की इच्छा रहती कि मैं बहुत धनवान बन जाऊँ,लोग मुझे वास्तव में धनपत कहें,चारों ओर मेरा नाम हो,इज्जत हो और लोग मुझे सिर झुकायें।वह सदा इसी प्रयास में रहता कि बस रुपया आये इस हेतु वह रुपयों का बराबर हिसाब रखता तथा ब्याज का एक रुपया भी किसी पर नहीं छोड़ता।इसके विपरीत मोहन बिल्कुल उल्टा चलता पैसा कमाता अपना पेट भरता और बचे हुए पैसों से ग़रीब लोगों की मदद करता।घर में अधिक पैसा न होने से लोग मोहन को ताने मारते कि तुम्हारे मित्र धनपत को देखो।मोहन अक्सर हँसकर बात टाल देता,घर परिवार के लोग भी उसको ताने मारा करते परंतु वह दूसरों का भला करने में दृढ़ निश्चयी था।कभी-कभी सोचता कि मैं वास्तव में ग़लत तो नहीं कर रहा?और अक्सर यह सोचकर निराश भी हो जाता,परन्तु भला करना उसका स्वभाव था। धीरे-धीरे धनपत तो धनपति बन गया लेकिन मोहन एक आम आदमी बन कर रह गया।कुछ ही वर्षों में दोनों की मृत्यु हो गयी।धनपत को यमदूत एक लोहे की जंजीर में बेइज्जती से बाँधकर ले गये एवं मोहन को बड़े सम्मान के साथ यमलोक ले गये।यमराज के सामने प्रस्तुत हुए यमराज दूतों से बोले कि मोहन को बिना विचारे ही स्वर्ग भेज दो और उसके बच्चों को यश-कीर्ति व धन प्रदान करो जबकि धनपत के कर्मों का हिसाब तो होगा इन्हें कहाँ भेजना है? इसका निर्णय होगा। इस पर धनपत बोला,”महाराज! यह तो अन्याय है कि मोहन को आपने बिना विचारे स्वर्ग भेज दिया,किन्तु मेरे कर्मों पर आप विचार कर रहे हैं।”यमराज बोले,”इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?आपने जीवन भर बस पैसों का हिसाब किया है,तो मुझे तुम्हारे कर्मों का हिसाब तो करना पड़ेगा, इसके विपरीत मोहन ने जब अपने जीवन में कोई हिसाब ही नहीं रखा केवल दूसरों का भला किया है,तो फिर उसका हिसाब हम कैसे कर सकते हैं?इतना ही नहीं धनपत तुम्हारे कर्मों का फल तुम्हारे बच्चों को भी भोगना पड़ेगा।”यह कहकर यमराज पुनः बोले,”यहाँ कोई कुछ नहीं करता,जो जैसा करता है।वैसा भरता है,इसलिए तुम्हारा हिसाब तो होगा।”यमराज के इतना कहते ही चारों ओर मौन पसर गया।
मौलिकता प्रमाणपत्र
मैं प्रमाणित करता हूँ कि ‘कहानी प्रतियोगिता’ हेतु प्रस्तुत कहानी मौलिक,अप्रकाशित एवं अप्रसारित, हैं।
भवदीय-प्रशांत शर्मा ‘सरल’,नरसिंहपुर (म.प्र.)
मो 9009594797