#हिरदेपीर भीनी-भीनी
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★ #हिरदेपीर.भीनी-भीनी ★
बिरहा के रंग से हुई काली
बीच राह खड़ी जो मतवाली
उदास नींदें पूछ रहीं
प्रियतम ऐसी रातों का क्या
शब्दों की परिधि न समाये जो
बिन कहे सुनी न जाये जो
कथा अधूरी रह जाये
साजन ऐसी बातों का क्या
हिरदेपीर भीनी-भीनी
प्रेमसदन ने जो दीनी
तेरे नाम की बावरी
प्रेमजनित मातों का क्या
प्रेम और ताप अनुराग बहुत
सावन भादों में आग बहुत
मन भीजे न तुम रीझे
ऐसी निष्फल बरसातों का क्या
मदनप्रिया का वो मर्दन
हुई बीती का आवर्तन
भस्म रति इस बार हुई
क्षुधित तृषित भातों का क्या
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२