हिरण
इधर-उधर जंगलों में,
भटक रहा है हिरण,
बिछड़ गया जब अपने झुंड से,
ना जाने क्या खोज रहा ।
दौड़ लगाता इतनी तेज,
होता बहुत ही स्फूर्तिवान,
पकड़ न सके कोई शिकारी,
आहट भांपते ही पकड़े रफ्तार ।
लंबी-लंबी लगाता छलांँग,
खाता है हरी वनस्पति-घास ,
होती है इसकी सुंदर खाल ,
देते हैं मृग नयनों की मिसाल ।
रचनाकार __
बुद्ध प्रकाश मौदहा हमीरपुर ।