” हिम्मत “
सुबह उठी तो सर दर्द से फट रहा था…चाय की तलब भी हो रही थी लेकिन मन नही हो रहा था ।
तभी देखा पतिदेव चाय की ट्रे पकड़े कमरे में घुस रहे हैं ,
चाय पी लो कह कप पकड़ा दिया ।
चाय पी कमरे से निकली तो सासू माँ अख़बार पढ़ रही थीं ” कैसी हो बेटा ?
ज़ोर से सुबक पड़ी मैं…विधि के विधान को कौन टाल सकता है ।
तुम्हारी माँ बिना किसी तक़लीफ के परलोक सिधार गईं ऐसी मृत्यु कहाँ मिलती है भला ?
ऐसी मृत्यु चाहते तो सब हैं ।
मम्मी कोई दिख नही रहा भईया – भाभी , तिन्नू अभी तक सो रहे हैं ?
अरे नही बेटा आज बड़ी बहु के पापा का जन्मदिन है ।
” यहाँ मनाते तो अच्छा नही लगता तो दूसरे शहर चले गये हैं सेलिब्रेशन के लिये रात तक लौट आयेगें । ”
” ये सुनते ही मेरे दुख से भरे ऑंसूओं के बहाव में जैसे पीड़ा का सैलाब आ गया । ”
” सासू माॅं का हाथ मेरी पीठ पर था…यही दुनिया है बेटा तुम ‘ हिम्मत ‘ रखो । ”
स्वरचित एवं मौलिक
( ममतासिंह देवा , 20/08/2021 )