हिमालय देश का मुकुट ——— #हिमालय_बचाओ
#हिमालय देश का मुकुट ———
#हिमालय_बचाओ
जाने माने साहित्यकार सोहनलाल द्विवेदी जी ने हिमालय पर कविता लिखी थी—
युग युग से है अपने पथ पर
देखो कैसा खड़ा हिमालय!
डिगता कभी न अपने प्रण से
रहता प्रण पर अड़ा हिमालय!
लेकिन इंसानी छेड़छाड़ ने हिमालय को अपने पथ से डिगा दिया है. इंसानी छेड़छाड़ से परेशान हिमालय अब डिगने लगा है. आठ साल पहले केदारनाथ में आई आपदा इसी का उदाहरण थी. देश के पर्यावरण को संरक्षित करने में हिमालय की अहम भूमिका है. अगर हिमालय नही बचेगा तो जीवन नहीं बचेगा. क्योंकि, हिमालय न सिर्फ प्राण वायु देता है बल्कि पर्यावरण को संरक्षित करने के साथ जैव विविधता को भी बरकरार रखता है. यही वजह कि हर साल 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है. क्या है मौजूदा हिमालय का स्वरूप. किस तरह से हिमालय में होता है मूवमेंट. क्या है इसकी हकीकत ?हिमालय का स्वरूप टेक्टोनिक और यूरेशियन प्लेट्स के मूवमेंट से जुड़ा हुआ है. वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय और अधिक ऊंचाई तक पहुंचेगा. हिमालय न सिर्फ उत्तराखंड के लिए बल्कि दिल्ली और आसपास के जनमानस के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है.
हिमालय बचेगा तो हम बचेंगे. हमे पूरे साल हिमालय दिवस मनाने की जरूरत है।
हिमालय पर पैदा होने वाली जड़ी-बूटियां भी न सिर्फ दवाइयों के काम में आती हैं, बल्कि वातावरण को शुद्ध करने में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान है. शायद यही वजह है कि वैज्ञानिक भी मानते हैं कि हिमालय पर्वत हमारे वातावरण के लिए एक मां का स्वरूप है. ऐसे में हिमालय संरक्षण के लिए हमें सिर्फ एक दिन हिमालय के संरक्षण का संकल्प नहीं, बल्कि जिस तरह से एक वैज्ञानिक साल के 365 दिनों को साइंस डे मानकर अपनी रिसर्च से जुटे रहते हैं, ठीक उसी तरह हिमालय को भी हमें 365 दिन हिमालय दिवस के रूप में मनाना चाहिए और हिमालय के संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए।
मशहूर पर्यावरणविद पद्म भूषण, पद्म श्री से सम्मानित अनिल जोशी जी के अनुसार
“हिमालय को देश का मुकुट भी कहा जाता है और सच तो यह है कि जो समाज अपने मुकुट को स्थिर ना रख पाए ,तो निश्चित ही उस देश की सुरक्षा और स्वतंत्रता पर सवाल स्वत: ही खड़े हो जाएंगे।
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———————–रवि सिंह भारती——————–