“हिन्दू मुस्लिम के चोंचले क्यूँ हैं “(मुक्तक)
“हिन्दू मुस्लिम के चोंचले क्यूँ हैं ”
(मुक्तक)
डगमगाये हमारे हौसलें क्यूँ है।
उजड़े पंछियों के घोंसले क्यूँ हैं।
हम तो सच के हिमायती हैं।
फिर वादे हमारे दोगले क्यूँ है।
टुटे हुए सब गमले क्यूँ हैं।
हम पर होते हमले क्यूँ हैं।
सब्ज बाग तो खूब दिखाते।
फिर होते सारे जुमले क्यूँ हैं।
कृष्ण इतने साँवले क्यूँ हैं।
शंकर इतने बावले क्यूँ हैं।
हम तो न्याय के पुजारी हैं।
फिर पेंडिंग इतने मामले क्यूँ हैं।
गड़बड़ सब घोटाला क्यूँ हैं।
जीजा से बड़ा साला क्यूँ हैं।
नदियाँ तो सारी पावन हैं।
फिर दूषित यहाँ हर नाला क्यूँ हैं।
बिखरे हुए अल्फाज़ क्यूँ हैं।
जुदा जुदा अंदाज क्यूँ हैं।
अन्न उगाने वाले यहाँ पर।
रोटी को मोहताज क्यूँ हैं।
कहीं मंदिर कहीं शिवाला क्यूँ हैं। कहीं तमस कहीं उजाला क्यूँ हैं। सब कुछ देख रहे हैं फिर भी।
सबकी आँखों पर जाला क्यूँ हैं।
राहें सभी विरान क्यूँ हैं।
मंजूर सब सुनसान क्यूँ हैं।
लगन हमारी सच्ची हैं तो।
फिर मंजिल अनजान क्यूँ हैं।
बेवजही ठकोसले क्यूँ हैं।
ख्वाब सारे खोखले क्यूँ हैं।
हम तो सारे सुलझे हुए हैं।
फिर उलझे सारे मसले क्यूँ हैं।
भृष्टता का बोलबाला क्यूँ हैं।
हर सफेद यहाँ काला क्यूँ हैं।
सब कुछ देख रहे हैं फिर भी।
जुबाँ पर सबके ताला क्यूँ हैं।
दरमियाँ हमारे फासलें क्यूँ है।
खून एक अलग नसलें क्यूँ हैं।
हम सब तो इंसान है।
फिर हिन्दू मुस्लिम के चोंचले क्यूँ हैं।
रामप्रसाद लिल्हारे
“मीना “