हिन्दी
ब्रह्म कमंडल से बही,हिन्दी की रसधार।
वरदहस्त वागेश्वरी,वीणा की झंकार।।
वंदनीय निज मात सम,ईश्वर की वरदान।
भारतवासी के लिए,हिन्दी है अभिमान।।
मात भारती भाल पर,शोभित शुभ श्रृंगार।
कालजयी भाषा रही,हिन्दी सदा बहार।।
भूल रहे हिन्दी हमीं,गुण गाता संसार।
वसुधैव कुटुम्बकम् है, इसका उच्च विचार।।
पढ़ने लिखने में सुगम, सहज सरल निज बोल।
सारे भाषा से अलग, हिन्दी है अनमोल।।
अपनाती हर रंग को,अपनी बाँह पसार।
एक डोर में बाँधती,हिन्दी प्रेमाधार।।
दिव्य शक्ति की सर्जना, महिमा अपरंपार।
कोटि-कोटि जन पूजता,हिन्दी सुख की सार।
पंत,निराला,जायसी,सूरदास रसखान।
हिन्दी स्वर में गूँजती,विद्यापति की गान।।
प्रेमचंद की लेखनी,बच्चनजी की मीत।
हिन्दी कविता की कलश,दिनकर की संगीत।।
तुलसी,मीरा,मैथिली,सूफी संत कबीर।
हिन्दी रसना घोलती,खुसरो और अमीर।।
पुरखों की भाषा रही,उत्तम ज्ञान प्रसाद।
आओ सब मिलकर करें, हिन्दी में संवाद।।
पूर्ण राष्ट्र भाषा बने,प्रसिद्धि मिले अपार।
गूँजे हिन्दी विश्व में,करो स्वप्न साकार।।
हिन्दी हिन्दुस्तान की,मोहक मधुर जुबान।
अपनी बोली बोलना,शर्म नहीं सम्मान।
घर में हिन्दी बोलिये,प्रथम पूर्ण परिवार।
हिन्दी भाषा के बिना, आजादी बेकार।।
सारे भाषा सीखिये,मगर रहे ये ध्यान।
हिन्दी भाषा का कभी, करें नहीं अपमान।।
शुभ स्नेहिल शुभकामना, मधुर-मधुरतम भाव।
हिन्दी से ही हिन्द का, गहरा रहा जुड़ाव।।
कण-कण में हिन्दी बसी, भाषा बड़ी महान।
विश्व संघ के मंच पर,दिया नई पहचान।।
अमर रहे हिन्दी सदा,मिले मान-सम्मान।
विश्व पटल पर चाहिए, और अधिक उत्थान ।।
-लक्ष्मी सिंह