हिन्दी भाषा
अ से अनपढ़, से लेकर जो ज्ञ से ज्ञानी बना दे
ये भाषा की ख़ूबसूरती है जो हमे अभिमानी बना दे
कबीर,तुलसी,निराला जी की ये शान है
हिन्दी हमारी भाषा नहीं ये हमारी पहचान है
धीरे धीरे लुप्त हो गई हमारी भाषा किताबों में
अपना ली है हमने अंग्रेज़ी अपनी बोल चालों में
पढ़ लिख कर विदेश जाना है यही सबका सपना है
अब हमारा देश पराया किसको लगता अपना है
कब तक इस आडम्बर को हम फ़ैशन बतायेंगे
छोड़ ये सपनोंको कब अपना देश अपनायेंगे
इस मिट्टी में रहकर ही कुछ ऐसा कर जाना है
हिन्दी भाषा को अपना कर उसे विश्व पटल पर पहुँचाना है