हिन्दी का उत्थान- दायित्व किसका?
हिन्दी का उत्थान दायित्व किसका ?
हिन्दी न केवल मेरी और आपकी बल्कि हम सभी 121 करोड़ भाई-बहनों की भाषा ही नहीं अपितु माता भी है | जिसका परिवार इतना बड़ा हो वह माँ दुःखी कैसे रह सकती है? तो हिन्दी के उत्थान का दायित्व भी केवल लेखकों या कवियों का नहीं बल्कि हम 121 करोड़ भारतीयों का है | अब देखना यह है कि ये माँ कितने दिनकर, कितने रवीन्द्र, कितने भारतेन्दु, कितने निराला, कितने बच्चन, कितने पंत, कितनी महादेवी और कितनी सुभद्रा पैदा करती है और कितने सपूत बिना कवि या लेखक होते हुए भी सर्वसाधारण तौर पर इसके उत्थान में अपना योगदान देते हैं?
बड़ी विडम्बना बाली बात है कि इस देश में उस अंग्रेजी़ जैसी विदेशी भाषा का सम्मान और रुतवा हमारी मातृभाषा से बढ़कर है जिसमें लिखते कुछ और हैं और बोलते कुछ और हैं | बी.यू.टी. को बट पढ़ते हैं लेकिन पी.यू.टी. को पुट पढ़ते हैं | मैने एक अंग्रेज़ी के अध्यापक से जब पूछा कि ऐसा क्यों होता है? तो इस “क्यों” का सटीक उत्तर उनके पास नहीं था, बातें गोल – गोल हुईं लेकिन उन बातों को यहाँ पर करने का मैं कोई लाभ नहीं समझता | हम तो उस भाषा के पुत्र हैं जिसमें जो लिखते हैं वही बोलते भी हैं | हमें गर्व होना चाहिये अपनी मातृभाषा पर, लेकिन अपने ऊपर लज्जा भी आनी चाहिये कि हम 120 करोड़ सपूत होकर भी अपनी माँ को अभी तक राष्ट्रमाता का – राष्ट्रभाषा का दर्जा़ नहीं दिलवा पाये | अधिक नहीं कहूँगा, सभी समझदार और मूर्द्धन्य विद्वान हैं, तो निर्धारित कीजिये कि दायित्व किसका है?
शिवम् सिंह सिसौदिया,
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
सम्पर्क- 8602810884, 8517070519